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जानें लीना खान के बारें में (Know more About Leena Khan), Meta (पहले Facebook) को Instagram और WhatsApp ऐप्स को बेचना पड़ सकता है.


कौन है लीना खान? 

लीना खान का जन्म 3 मार्च 1989 को लंदन, यूनाइटेड किंगडम में पाकिस्तानी माता-पिता के यहाँ हुआ था। लीना खान 11 साल की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं। 2010 में, उन्होंने विलियम्स कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की , जहाँ उन्होंने हन्ना अरेंड्ट पर अपनी थीसिस लिखी । विलियम्स कॉलेज में अपने समय के दौरान, खान ने छात्र समाचार पत्र के संपादक के रूप में कार्य किया।

33 साल की लीना खान (Lina Khan) का नाम एंटीट्रस्ट इशू के साथ पुराने वक्त से जुड़ा हुआ है. जब वह Yale Law School में थी तब से वह अमेरिका में एंटीट्रस्ट और कंपटीशन लॉ काम के लिए जानी जाती हैं. मार्च 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने उन्हें कमीशन में अपॉइंट किया और वह जून 2021 से काम कर रही हैं. इसके साथ ही वह Columbia Law School में एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं. 

बिक जाएंगे Insta और WhatsApp

Instagram और WhatsApp दोनों ही ऐप्स Meta (Facebook) के रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन कंपनी ऐसा क्यों करेगी? इसका कारण फेडरल ट्रेड कमीशन है, जिसका नेतृत्व Lina Khan (लीना खान) कर रही हैं. लीना खान (Lina Khan) को पिछले साल मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कमीशन में अपॉइंट किया. फेडरल ट्रेड कमीशन को फेडरल जज से हरी झंडी मिल गई है, जिसके बाद वह एंट्री ट्रस्ट मामले में दिग्गज टेक कंपनी Meta को कोर्ट में घसीट सकता है.

हालांकि, इससे पहले पिछले साल भी एजेंसी मेटा (तब फेसबुक) के खिलाफ कोर्ट जा चुकी है. उस वक्त कोर्ट ने कम जानकारी के कारण इस मामले की सुनवाई नहीं की. इस बार FTC अपनी शिकायत में बदलाव के साथ कोर्ट पहुंचा है. FTC का आरोप है कि सोशल नेटवर्क क्षेत्र में Meta की मोनोपोली है. हालांकि, FTC की नजर सिर्फ सोशल मीडिया कंपनी Meta पर ही नहीं, बल्कि Amazon और गूगल पर भी है. 


FTC ने पहले दी थी मंजूरी

ध्यान दें कि साल 2012 में FTC ने ही फेसबुक की 1 अरब डॉलर में इंस्टाग्राम के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी. उस वक्त कंपनी में 13 कर्मचारी थे. इसके दो साल बाद यानी साल 2014 में फेसबुक ने इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप WhatsApp को 19 अरब डॉलर में खरीदा. अब FTC दलील दे रहा है कि फेसबुक ने क्रम से अपने कंपटीटर्स को खरीदा है और मोनोपोली बनाई है. कमीशन का आरोप है कि कंपनी के प्रभाव के कारण कंज्यूमर्स को कम विकल्प मिल रहे हैं. साथ ही इस बाजार में नए टेक और बिजनेस इनोवेशन भी नहीं आ रहे. इससे प्राइवेसी प्रोटेक्शन में भी कमी आई है. 

अमेरिका में एंट्रीटस्ट्र मोनोपोली लॉ की पैरवी करते हुए लीना खान में अपने करियर में बड़ी टेक कंपनियों को चुनौती दी है. हालांकि, मेटा ने अपने बचाव में लीना की इसी इमेज का इस्तेमाल किया है. कंपनी का दावा है कि लीना कंपनियों को लेकर पक्षपात करती है. वहीं मामले की सुनवाई कर रहे फेडरल जज James E. Boasberg ने मेटा के इस दावे को खारिज कर दिया.

बचपन का शौक अब चढ़ा परवान: पंजाब में किसान ने बना डाले 50 से अधिक जहाज, खेतों में भरते हैं उड़ान


बचपन में कागज के जहाज बनाकर उड़ाते थे। सपना था कि हवाई जहाज बनाएंगे। पंजाब के 50 वर्षीय किसान यादविंदर सिंह खोखर ने अपने इस सपने को सच करके भी दिखा दिया। वह थर्माकोल से जहाज बना कर रिमोट से उड़ा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन में भी रजिस्ट्रेशन कराया है। खोखर 80 एकड़ जमीन में खेती करने के साथ ही 50 से ज्यादा हवाई एवं जंगी जहाज के मॉडल तैयार कर चुके हैं। खेत में ही 50 फुट का रनवे भी बनाया है। हाल ही में उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। खोखर ने पीजी डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस में किया है। यादविंदर सिंह खोखर बठिंडा के सरियावाला गांव के रहने वाले हैं।

खोखर ने हाल ही में सी-130 हरक्यूलिस का मॉडल बनाया है। यह 94 इंच लंबा और साढ़े सात किलो वजन का है। इसे बनाने में उन्हें करीब दो महीने का समय लगा। इस पर करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च आया। इससे पहले वह एफ-16 जंगी जहाज एवं कई घरेलू एयरक्राफ्ट के मॉडल बना चुके हैं। उन्होंने घर में ऐसे मॉडलों का एक संग्रहालय बनाया है। वह कई विश्वविद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में प्रदर्शनी लगा चुके हैं। इसके लिए उन्हें बठिंडा प्रशासन सम्मानित भी कर चुका है।

खोखर ने बताया कि 2007 में किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने इंग्लैंड गए थे। वहां पर उन्होंने इसी तरह के मॉडल का एक शो देखा था। वहां से वह दो एयरक्राफ्ट के मॉडल भी खरीद कर लाए। तब उन्हें लगा कि वह अब हकीकत के एयरक्राफ्ट बना सकते हैं। इसके बाद उन्होंने एयरक्राफ्ट के मॉडल से संबंधित ऑनलाइन अध्ययन किया।

खोखर ने अभी थर्माकोल की बॉडी वाले एयरक्राफ्ट मॉडल बनाए हैं। वह आगे कार्बन फाइबर एवं ग्लास की बॉडी के भी एयरक्राफ्ट मॉडल बनाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर यह एयरक्राफ्ट मददगार साबित हो सकते हैं। इसके अलावा एयरक्राफ्ट एवं ड्रोन का हाइब्रिड बनाकर खेती की देखभाल एवं कीटनाशक दवाइयां छिड़कने जैसे काम भी किए जा सकते हैं।

उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटा, सोशल मीडिया पर वायरल हुए तबाही के वीडियो, CM बोले- अफवाहें न फैलाएं

उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही हुई है। रेणी गांव के पास ग्लेशियर टूटने से भारी जानमाल के नुकसान की आशंका जताई जा रही है। बचाव अभियान के लिए मौके पर ITBP और SDRF की टीमें पहुंच गईं हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश समेत पड़ोसी राज्यों में भी अलर्ट जारी किया गया है।

आपदा की खबरें आने के बाद सोशल मीडिया पर तबाही के वीडियो वायरल होने लगे। पानी के बहाव से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीच में आने वाले पुल, रास्ते और घर इससे बच नहीं पाए होंगे। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि हालात पर रखी जा रही है। उन्होंने लोगों से अफवाहों पर भरोसा न करने और उसे न फैलाने की अपील की है।

वहीं, उत्तर प्रदेश में भी गंगा के किनारे बसे शहरों में अलर्ट जारी किया गया है। बिजनौर, कन्नौज, फतेहगढ़, प्रयागराज, कानपुर, मिर्जापुर, गढ़मुक्तेश्वर, गाजीपुर और वाराणसी जैसे कई जिलों में डीएम को हालात पर नजर बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं। वहीं, बिजनौर, बुलंदशहर में गंगा किनारे खेतों पर काम कर रहे किसानों को पुलिस ने भेज दिया है। बिजनौर के आसपास के दर्जनभर गांवों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।

म्यांमार सेना का बड़ा मूवमेंट - रविवार देर रात 2 बजे तख्तापलट


म्यांमार की मिलिट्री ने रविवार देर रात 2 बजे तख्तापलट कर दिया। देश में पिछले 10 साल से लोकतांत्रिक सरकार थी, जबकि इससे पहले 2011 तक यहां सैन्य शासन ही था। 

मिलिट्री के तख्तापलट के दौरान किसी मौत की खबर तो नहीं आई, लेकिन देश में 48 साल तक सैन्य शासन झेल चुकी म्यांमार की जनता इससे दुखी है। लोकप्रिय नेता और स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और प्रेसिडेंट विन मिंट समेत कई नेताओं को मिलिट्री ने अरेस्ट कर लिया है। म्यांमार में पिछले तीन दिन से सेना का बहुत बड़ा मूवमेंट चल रहा था। इसको लेकर अंदेशा भी था कि मिलिट्री कोई बड़ा कदम उठा सकती है।

तख्तापलट के बाद सेना ने म्यांमार में 1 साल के लिए इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है। अब सत्ता पूरी तरह सेना के हाथ में आ गई है। दुनिया के कई देशों ने इसकी निंदा की है। भारत ने भी हालात पर चिंता जताई है। सुबह लोगों को जब आधी रात को हो चुके सत्ता परिवर्तन के बारे में पता लगा, तो लोगों ने बाजारों में जाकर जमकर खरीदारी शुरू कर दी।

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की ओर से कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया गया है। हालांकि, पीपुल्स पार्टी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में सत्ता परिवर्तन का विरोध किया है।

आम जनता के पास अब तक जरूरी इन्फॉर्मेशन नहीं है। कोरोना महामारी के कारण देश में नौकरी और कारोबार पर काफी असर हुआ था। आर्थिक रूप से परेशान लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच म्यांमार में मिलिट्री शासन लगा दिया गया है। लोग व्यथित और गुस्से में हैं। म्यांमार की जनता चाहती है कि पॉलिटिकल चैनल से बातचीत शुरू की जाए।

एक्सप्लेनर:भारत के उलट इंडोनेशिया में बुजुर्गों को नहीं, बल्कि कामकाजी आबादी को पहले लगेगी वैक्सीन


दुनिया में करीब 16 देशों में कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन शुरू हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइडलाइन के आधार पर प्रायोरिटी ग्रुप्स तय किए गए हैं। इस पर अमल करते हुए अमेरिका, ब्रिटेन समेत तमाम देशों में हेल्थवर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ बुजुर्गों को सबसे पहले वैक्सीन लगाई जा रही है।

भारत भी इसी अप्रोच से आगे बढ़ रहा है। जनवरी में जब वैक्सीनेशन शुरू होगा तो यहां भी हेल्थकेयर वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स और बुजुर्गों को सबसे पहले वैक्सीन लगाई जाएगी। सरकारी योजना के मुताबिक 30 करोड़ लोग इन ग्रुप्स में हैं, जिन्हें सबसे पहले वैक्सीन लगाई जाएगी।

इंडोनेशिया भी उन देशों में शामिल है, जहां इसी महीने वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है। पर यहां थोड़ा ट्विस्ट है। उसने बुजुर्गों के बजाय कामकाजी आबादी को प्राथमिकता देने का फैसला किया है। यानी हेल्थकेयर वर्कर्स और सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ कामकाजी आबादी को वैक्सीन लगाई जाएगी। इसका उद्देश्य कोरोनावायरस के खिलाफ तेजी से हर्ड इम्युनिटी तक पहुंचना और इकोनॉमी को पटरी पर लाना है। यह नजरिया बाकी देशों से अलग है, इसलिए पूरी दुनिया की वैक्सीन विशेषज्ञ और अर्थशास्त्रियों की नजर इस पर है। आइए जानते हैं कि इंडोनेशिया ऐसा क्या और क्यों कर रहा है?

1.इसकी मुख्य रूप से दो वजहें हैं। पहला, इंडोनेशिया में चीन की कंपनी सिनोवेक बायोटेक की वैक्सीन का इस्तेमाल होने वाला है। इंडोनेशिया का कहना है कि यह वैक्सीन बुजुर्गों पर कितनी असरदार है, इसका कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। ट्रायल्स 18-59 वर्ष के लोगों पर हुए हैं, इस वजह से उन्हें भी प्रायोरिटी ग्रुप्स में रखा गया है।

2.दूसरा पहलू यह भी है कि इंडोनेशिया के ड्रग रेगुलेटर ने बुजुर्गों के वैक्सीनेशन प्लान को लेकर कोई सिफारिश नहीं की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी सिती नादिया तारमिजी ने कहा- 'हम ट्रेंड के विपरीत नहीं जा रहे। हम रेगुलेटर की सिफारिशों का इंतजार कर रहे हैं।'

3.इसे इस तरह समझ सकते हैं कि ब्रिटेन और अमेरिका ने फाइजर की वैक्सीन के साथ टीकाकरण शुरू किया है। इसके बाद ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोवीशील्ड और अमेरिका में मॉडर्ना की वैक्सीन को वैक्सीनेशन में शामिल किया है। यह तीनों ही वैक्सीन सभी आयु वर्गों पर असरदार साबित हुई है। इसके मुकाबले सिनोवेक बायोटेक की कोरोनावैक पर ट्रायल्स सीमित आयु वर्गों पर हुए हैं।

4.दरअसल, इस दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश ने सिनोवेक के कोरोनावैक शॉट के 12.55 करोड़ डोज की डील की है। तीस लाख डोज का पहला बैच इंडोनेशिया पहुंच गया है। यानी वैक्सीनेशन इसी से शुरू होगा। एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन दूसरी तिमाही में और फाइजर की वैक्सीन तीसरी तिमाही में यहां पहुंचेगी।

ब्रिटेन में नये स्ट्रेन का कहर - पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान


ब्रिटेन कोरोना वायरस (कोविड-19) का नया स्ट्रेन कहर बरपा रहा है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने नये स्ट्रेन के प्रसार को रोकने के लिए देश में पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया है। पीएम ने कहा है कि देश में लॉकडाउन कम से कम फरवरी के मध्य यानी डेढ़ महीने तक रहेगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में लॉकडाउन के दौरान प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल भी बंद रहेंगे। बता दें कि प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से स्कॉटलैंड ने भी इसी तरह का फैसला लिया है, जो आज रात 12 बजे से लागू हो जाएगा। 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन (इंग्लैंड) की आबादी में से लगभग तीन-चौथाई लोग पहले से ही सबसे कड़े प्रतिबंधों के तहत रह रहे हैं। पीएम बोरिस जॉनसन ने यह भी कहा है कि हमारे अस्पतालों पर दबाव बढ़ गया है। देश में अस्पतालों में मरीजों का आंकड़ा 27 हजार से ज्यादा पहुंच गया है जोकि अप्रैल के मुकाबले 40 प्रतिशत ज्यादा है। देश में पिछले एक हफ्ते के दौरान मरने वालों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ गई है। 

कोरोना के नए रूप को काबू करने के लिए हमें ज्यादा कोशिश करने की जरूरत है। नये स्ट्रेन के फैलने का कारण मिली जानकारी के मुताबिक, कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन के तेजी से फैलने की वजह शिक्षक संगठन कुछ हफ्ते के लिए देश भर में सभी स्कूलों को बंद करने की अपील कर रहे थे। पीएम बोरिस जॉनसन का कहा है कि अभिभावकों को सोमवार से अपने बच्चों को उन इलाकों के स्कूलों में भेजना चाहिए जहां वे खुले हुए हैं। क्योंकि, खतरनाक वायरस से बच्चों को खतरा काफी कम है।

दो महीने से गायब हैं अलीबाबा के फाउंडर जैक मा - चीन सरकार की आलोचना की थी



एशिया की सबसे अमीर शख्सियतों में शुमार, अलीबाबा समूह के मालिक जैक मा इस समय कहां है, इसे लेकर रहस्य गहराता जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले दो महीनों से वे किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं देखे गए हैं। दरअसल, जैक मा ने पिछले साल अक्टूबर महीने में किसी मुद्दे पर चीनी सरकार की आलोचना की थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके बाद से ही जैक मा की कोई सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज नहीं हुई है।

द टेलिग्राफ के अनुसार, जैक मा के बारे में रहस्य तब और बढ़ गया, जब वे अपने टैलेंट शो (Africa’s Business Heroes) के फाइनल एपिसोड में भी नहीं दिखाई दिए। मा की जगह इस एपिसोड में अलीबाबा के एक अधिकारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। अलीबाबा के प्रवक्ता के अनुसार, मा अपने व्यस्त कार्यक्रम के चलते इस एपिसोड में भाग नहीं ले पाए थे। हालांकि, कार्यक्रम की वेबसाइट से मा की तस्वीर हटने के बाद रहस्य और गहरा गया।

जैक मा ने अक्टूबर, 2020 में चीन के वित्‍तीय नियामकों और सरकारी बैंकों की आलोचना की थी। उन्होंने शंघाई में दिए भाषण में यह आलोचना की थी। जैक मा ने सरकार से आह्वान किया था कि वह ऐसे सिस्‍टम में बदलाव करे, जो कारोबार में नवाचारों के प्रयासों को दबाने का काम करते हैं। मा के इस भाषण के बाद चीन की सत्‍तारूढ़ कम्‍युनिस्‍ट पार्टी मा पर बिगड़ गई थी। इसके बाद से मा के एंट ग्रुप सहित कई कारोबारों पर असाधारण प्रतिबंध लगाए जाने शुरू हो गए थे।

मीडिया के प्रति काफी सहज रहने वाले जैक मा का एंट ग्रुप के IPO के निलंबन के बाद से ही कोई सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज नहीं कराना सभी को चौंका रहा है। आपको बता दें कि 2016 और 2017 में चीन के कुख्यात भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान कई अरबपति गायब हो गए थे। इनमें से कुछ दोबारा दिखाई दिए। उन्होंने बताया था कि वे अधिकारियों की मदद कर रहे थे। जबकि, अन्य कभी नहीं लौटे। 

वैज्ञानिकों की लंबे समय से चल रही तलाश पूरी, शुक्र के बादलों में जीवन के संकेत मिले



वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के बादलों में फॉस्फीन गैस के अणुओं की पहचान की है। इस गैसीय अणु की उपस्थिति को पड़ोसी ग्रह के वातावरण में सूक्ष्म जीवों के होने का संकेत माना जा रहा है। ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती पर फॉस्फीन गैस या तो औद्योगिक तरीके से बनाई जाती है या फिर ऐसे सूक्ष्म जीवों से बनती है जो बिना ऑक्सीजन वाले वातावरण में रहते हैं। वैज्ञानिक लंबे समय में शुक्र के बादलों में जीवन के संकेत तलाश रहे हैं।

उत्सुकता के आधार पर किया गया प्रयोग

फॉस्फीन में हाइड्रोजन और फॉस्फोरस होता है। शुक्र के बादलों में इस गैस का होना वहां के वातावरण में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति का संकेत दे रहा है। इस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने पहले जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलिस्कोप (जेसीएमटी) का इस्तेमाल किया। इसके बाद चिली में 45 टेलिस्कोप से इस पर नजर रखी गई। प्रोफेसर जेन ग्रीव्स ने कहा कि यह पूरी तरह से उत्सुकता के आधार पर किया गया प्रयोग था।

सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति की संभावना और मजबूत हुई

पड़ोसी ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति बहुत क्षीण है। एक अरब अणुओं में फॉस्फीन के करीब 20 अणु मिले हैं। वैज्ञानिक ने इस संभावना पर भी अध्ययन किया है कि यहां फॉस्फीन के बनने में किसी प्राकृतिक क्रिया का योगदान है या नहीं। इस संबंध में बहुत पुख्ता प्रमाण नहीं मिल सके हैं। सूर्य के प्रकाश और ग्रह की सतह से ऊपर उठे कुछ खनिजों की क्रिया से भी इस गैस के बनने की बात कही गई, हालांकि इसकी भी पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति की संभावना और मजबूत हुई है।

आपको बता दें कि शुक्र सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है। चंद्रमा के बाद यह रात को आकाश में सबसे चमकीला दिखने वाला ग्रह है। शुक्र एक ऐसा ग्रह है, जो पृथ्वी से देखने पर कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लिए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुंचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है।

8 लाख भारतीयों को छाेड़ना पड़ सकता है कुवैत


कुवैत की नेशनल असेंबली और लेजिस्लेटिव कमेटी ने अप्रवासी कोटा बिल के मसौदे को मंजूरी दे दी है। गल्फ न्यूज के मुताबिक, कमेटी ने इस बिल को संवैधानिक करार दिया है। अब इसे असेंबली की दूसरी समितियों के पास भेजा जाएगा। बिल के पारित होने के बाद करीब 8 लाख भारतीय को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है। बिल के मुताबिक कुवैत में भारतीयों की संख्या देश की आबादी में 15% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके लिए एक व्यापक योजना तैयार करने की बात भी कही गई है।

महामारी शुरू होने के बाद से ही कुवैत में दूसरे देशों के लोगों के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। यहां के सरकारी अधिकारी और सांसद लगातार कुवैत से विदेशियों की संख्या कम करने की मांग कर रहे हैं। पिछले महीने कुवैत के प्रधानमंत्री शेख शबा-अल खालिद अल-शबा ने देश में प्रवासियों की संख्या 70% से घटाकर 30% करने का प्रस्ताव रखा था।

देश के सांसदों से कहा गया है कि एक साल के अंदर सभी सरकारी विभागों से प्रवासियों की नौकरियां खत्म करें। इसी साल मई में सरकार ने नगरपालिका की सभी नौकरियों में प्रवासियों की जगह कुवैत के नागरिकों को नियुक्त करने को कहा था। जून में सरकारी तेल कंपनी कुवैत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (केपीसी) और इसकी इकाइयों में 2020-21 के लिए सभी प्रवासियों को बैन करने का ऐलान किया गया था। फिलहाल यहां दूसरे देशों के लोगों को नौकरियां देने पर भी रोक है।

कुवैत में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है। कुवैत में करीब 10.45 लाख भारतीय रहते हैं। देश की कुल आबादी 40.3 लाख है। इनमें दूसरे देशों से आए लोगों की संख्या करीब 30 लाख है। कुवैत के नागरिकों और दूसरे देशों से पहुंचे लोगों की संख्या के बीच भारी अंतर है। इसे देखते हुए पिछले साल सांसद सफ-अल हाशम ने सरकार से अगले पांच साल में करीब 20 लाख प्रवासियों को देश से बाहर भेजने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि देश में कुवैतियों की संख्या कुल आबादी की करीब 50% होनी चाहिए।

नेपाल की राजनीति में फैसले का वक्त


नेपाल की सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) टूट की कगार पर है। उसके अध्यक्ष और प्रधानमंत्री केपी ओली ने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है। ओली ने शनिवार शाम हुई कैबिनेट की आपात बैठक में अपने मंत्रियों से कहा कि वे साफ बताएं कि किसकी तरफ हैं? किसका समर्थन करेंगे? या उनकी सरकार के खिलाफ हैं, क्योंकि पार्टी और देश मुश्किल में हैं। यह जानकारी बैठक में मौजूद एक मंत्री ने दी। बैठक में हुई औपचारिक बातचीत का ब्योरा जारी नहीं किया गया।

ओली ने कहा कि पार्टी के कुछ नेता उन्हें हटाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही ये लोग राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के खिलाफ महाभियोग चलाने की साजिश रच रहे हैं, क्योंकि उन्होंने मेरा समर्थन किया था। भंडारी और ओली के बीच बहुत अच्छे राजनीतिक संबंध हैं। ओली के समर्थन से, भंडारी 2015 के बाद से दो बार राष्ट्रपति बन चुकी हैं।

ओली ने यह संकेत भी दिया कि वे जल्द ही कोई बड़ा फैसला कर रहे हैं और उनकी पार्टी टूट की कगार पर है। ओली पर प्रधानमंत्री पद और पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव है। उनके सामने इन दोनों पदों को बचाने की चुनौती है।

एनसीपी को टूट से बचाने के लिए तमाम कोशिशें हो रही हैं। इसके लिए कुछ मझोले नेता दोनों पक्षों को चेतावनी भी दे रहे हैं। अब आम सहमति बनाने के लिए पार्टी की बैठक सोमवार तक के लिए टाल दी गई है, लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। पुष्प कमल दहल प्रचंड की अगुआई वाला बागियों का गुट ओली पर इस्तीफे का दबाव बना रहा है।

प्रचंड ओली को प्रधानमंत्री पद से हटाने और पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं। दहल को माधव नेपाल और झालानाथ खनल समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन है। हालांकि, ओली इन खबरों को खारिज कर रहे हैं। ओली और प्रचंड की पिछली बैठक शुक्रवार को हुई थी। यह करीब तीन घंटे चली थी। इसमें प्रचंड ने ओली के इस्तीफे की मांग दोहराई। हालांकि, बाद में उन्होंने इस दावे को खारिज किया और कहा कि उनके बीच इस्तीफे से इतर कुछ अन्य मुद्दों पर बात हुई।

वैज्ञानिकों का दावा हवा से भी फैल सकता है कोरोना


वाशिंगटन [द न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स/रॉयटर]। कोरोना संक्रमण के हवा से फैलने को लेकर पहले भी आशंकाएं जाहिर की जाती रही हैं लेकिन हर बार विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ इन्‍हें खारिज करता रहा है। अब अमेरिकी अखबार 'द न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स' की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 239 वैज्ञानिकों का दावा है कि हवा में मौजूद कोरोना वायरस के नन्‍हें कण लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। यही नहीं वैज्ञानिकों ने विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (World Health Organization, WHO) से इन दावों पर गौर करने के लिए भी कहा है। वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ से दिशा-निर्देशों में बदलाव करने की गुजारिश भी की है। 

डब्ल्यूएचओ को लिखा खुला पत्र 
शनिवार को प्रकाशित 'द न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स' की रिपोर्ट के मुताबिक, 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन को लिखे खुले पत्र में कहा है कि प्रमाण दर्शाते हैं कि हवा में मौजूद छोटे कण लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना हवा हवा के जरिए फैलकर लोगों को संक्रमित कर सकता है। यहां तक कि इनडोर क्षेत्रों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करने के बावजूद संक्रमित व्यक्ति से अन्य लोग आसानी से हवा के जरिए संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए चारदीवारियों में बंद रहते हुए भी एन-95 मास्क पहनने की जरूरत है।

अमेरिका ने जताई 'चिंता' - भारत में धार्मिक स्वतंत्रता


अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने भारत को सभी धर्मों के लिए ऐतिहासिक रूप से काफी सहिष्णु, सम्मानपूर्वक देश बताते हुए कहा कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के सदंर्भ में जो भी हो रहा है उसे लेकर अमेरिका ‘बहुत चिंतित' है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए राजनयिक सैमुअल ब्राउनबैक का यह बयान बुधवार को ‘2019 अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट' जारी होने के बाद आई हैं. विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो की ओर सेजारी की गई इस रिपोर्ट में दुनियाभर में धार्मिक आजादी के उल्लंघन की प्रमुख घटनाओं का जिक्र है.

भारत ने अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी विदेशी सरकार को उसके नागरिकों के सवैधानिक अधिकारों की स्थिति पर फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं है.

विदेशी पत्रकारों के साथ फोन पर हुई बातचीत के दौरान ब्राउनबैक ने बुधवार को कहा कि भारत ऐसा देश है जिसने खुद चार बड़े धर्मों को जन्म दिया. उन्होंने कहा, ‘भारत में जो भी हो रहा है हम उससे बहुत चिंतित हैं. वह ऐतिहासिक रूप से सभी धर्मों के लिए बहुत ही सहिष्णु, सम्मानपूर्वक देश रहा है.' ब्राउनबैक ने कहा कि भारत में जो चल रहा है वह बहुत ही परेशान करने वाला है क्योंकि यह बहुत ही धार्मिक उपमहाद्वीप है और वहां अधिक सांप्रदायिक हिंसा देखने को मिल रही है.

उन्होंने कहा, ‘हम और परेशानी देखने जा रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि भारत में बहुत उच्च स्तर पर अंतर धार्मिक संवाद शुरू होना चाहिए और फिर विशिष्ट मुद्दों से निपटना चाहिए. भारत में इस विषय पर और कोशिशें करने की जरूरत है और मेरी चिंता भी यही है कि अगर ये कोशिशें नहीं की गईं तो हिंसा बढ़ सकती है.'

एक सवाल का जवाब देते हुए ब्राउनबैक ने उम्मीद जताई कि कोविड-19 के प्रसार के लिए अल्पसंख्यक धर्मों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाए और उन्हें संकट के दौरान जरूरत पड़ने पर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं और भोजन और दवाएं मुहैया कराई जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी तरह के भेदभाव की निंदा करते हुए कहा था कि कोविड-19 महामारी हर किसी पर समान रूप से असर डालती है.

बता दें कि भारत सरकार ने अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट को पहले खारिज करते हुए कहा था, ‘भारत को सबसे बड़ा लोकतंत्र और सहिष्णुता व समावेशिता की दीर्घकालीन प्रतिबद्धता के साथ बहुलवाद समाज होने के नाते अपनी धर्म निरपेक्षता, अपनी स्थिति पर गर्व है.'

इससे पहले अमेरिका के विदेश विभाग ने अपने भारत अध्याय की रिपोर्ट में कहा कि धार्मिक रूप से प्रेरित हत्याओं, हमलों, दंगों, भेदभाव, तोड़फोड़ की रिपोर्टें हैं जो अपने धर्म को मानने और उसके बारे में बोलने के अधिकार से रोकती हैं. रिपोर्ट में कहा गया था कि गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2008 से 2017 के बीच सांप्रदायिक हिंसा की 7,484 घटनाएं हुई जिनमें 1,100 से अधिक लोग मारे गए. फेडरेशन ऑफ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गेनाइजेशंस ने एक बयान में इस रिपोर्ट का स्वागत किया है.

साल का तीसरा चंद्र ग्रहण आज


साल का तीसरा चंद्रग्रहण आज लगने वाला है। ये उपछाया चंद्रगहण भारत में नहीं दिखेगा। यह दक्षिण एशिया के कुछ इलाकों समेत अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा। भारतीय समय के अनुसार ग्रहण सुबह 8 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा और 11 बजकर 22 मिनट पर खत्म होगा। यह ग्रहण कुल 02 घंटे 43 मिनट 24 सेकंड तक रहेगा। इसका प्रभाव 09: 59 पर सबसे अधिक देखने को मिलेगा। पिछले एक महीने के दौरान तीसरी बार ग्रहण लग रहा है। इससे पहले 21 जून को सूर्य ग्रहण लगा था। वहीं 5 जून को चंद्र गहण लगा था। दोनों ग्रहण भारत में दिखाई दिए थे। 

बता दें कि लास एंजिल्स में चंद्र गहण चार जुलाई को स्थानीय समयानुसार 8 बजकर 5 मिनट से शुरू होगा और 10 बजकर 52 मिनट तक दिखाई देगा। केपटाउन में पांच जुलाई को स्थानीय समयानुसार ग्रहण सुबह 5 बजे तक खत्म होगा। इसके 5 महीने 25 दिन बाद 30 नवंबर को चंद्रग्रहण लगेगा। वहीं 14 दिसंबर 2020 को पूर्ण सूर्यग्रहण लगेगा, जो भारत में नहीं दिखेगा।

हॉन्ग कॉन्ग का इतिहास (1838-2020)


19वीं सदी में ब्रिटेन में कभी सूरज अस्त नहीं होता है. ये इसलिए कहा जाता था कि ब्रिटेन के उपनिवेश पूरी दुनिया में थे. और एक जगह अगर सूरज डूब रहा होता था तो दुनिया के किसी कोने में सूर्योदय हो रहा होता था और उस देश पर अंग्रेजों का कब्जा होता था. अंग्रेज दुनिया के नक्शे पर बने देशों में कारोबार करने की नीयत से घुसते थे और फिर उन देशों पर कब्जा कर लेते थे. कब्जे के लिए कभी बल का सहारा लेते थे तो कभी छल का और आखिर में देश को अपना गुलाम बना लेते थे. ऐसा ही एक देश अपना भारत भी था, जिसपर अंग्रेजों का कब्जा था.

तब चीन के साथ ब्रिटेन के कारोबारी रिश्ते थे. ब्रिटेन तब चीन से रेशम और चाय की खरीदारी करता था. लेकिन चीन इसके बदले कोई सामान न लेकर चांदी लेता था. अंग्रेजों को ये मंजूर नहीं था, लेकिन उनकी मजबूरी थी. तब अंग्रेजों ने एक चाल चली. उन्होंने भारत के किसानों पर जुल्म करके अफीम उगाने को मजबूर कर दिया. और इस अफीम की सप्लाई वो चोरी-छिपे चीन को करने लगे. नतीजा ये हुआ कि जल्दी ही चीन की एक बड़ी आबादी को अफीम की लत लग गई. जब चीन सरकार को इसका पता चला, तो उन्होंने अफीम की खरीदारी पर पाबंदी लगा दी. अब अंग्रेजों ने ताकत का सहारा लिया और चीन के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. इतिहास में इस युद्ध को अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता है, जो 1839 से 1842 तक चला. इस लड़ाई में चीन को हार का सामना करना पड़ा. उसे अंग्रेजों के साथ एक संधि करनी पड़ी जिसे कहा जाता है नानजिंग ट्रीटी. इस संधि के तहत चीन को अपना एक द्वीप अंग्रेजों के हवाले करना पड़ा, जिसका नाम था हॉन्ग कॉन्ग आईलैंड.

इस लड़ाई को जीतने के बाद भी अंग्रेज शांत नहीं बैठे. 1856 में चीन के खिलाफ एक और लड़ाई छेड़ दी. इसे दूसरा अफीम युद्ध कहा जाता है. इस लड़ाई में भी चीन की हार हुई और एक बार फिर से चीन का काउलून अंग्रेजों के पास चला गया. हॉन्ग कॉन्ग द्वीप था, जबकि काउलून इस द्वीप के सामने का ज़मीनी इलाका था. अंग्रेजों ने इस काउलून और हॉन्ग कॉन्ग आईलैंड को एक साथ मिला दिया और उसपर अपना झंडा लगा दिया. इसके बाद चीन के साथ ब्रिटेन की एक और लड़ाई हुई. ये लड़ाई हुई 1898 में. इसमें भी चीन की हार हुई और एक बार फिर से चीन को ब्रिटेन के आगे झुकना पड़ा. इस बार चीन को अपनी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा 99 साल की लीज पर ब्रिटेन को देना पड़ा. ब्रिटेन ने इस हिस्से को भी काउलून और हॉन्ग कॉन्ग के साथ मिला दिया. इस पूरे समझौते को नाम दिया गया कन्वेंशन फॉर द एक्सटेंशन ऑफ़ हॉन्ग कॉन्ग टेरेटरी.

अब चीन से जीते हुए इलाके को अंग्रेजों ने एक मुल्क की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और नाम रखा हॉन्ग कॉन्ग. अंग्रेजों ने अपने कारोबारी फायदे के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया. और इस्तेमाल की बदौलत हॉन्ग कॉन्ग में बंदरगाह से लेकर नई-नई सड़कें तक बन गईं और इसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो गई. लेकिन जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ और जीत के बाद भी अंग्रेजों को खासा नुकसान उठाना पड़ा, तो ये साफ हो गया कि अब ब्रिटेन का उपनिवेशवादी चरित्र लंबे समय तक कायम नहीं रह सकता है. एक-एक करके ब्रिटेन अपने उपनिवेशों को स्वतंत्र करता गया और अपने फैले हुए दायरे को समेटता गया. बात हॉन्ग कॉन्ग की भी हुई. करार के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग पर ब्रिटेन का कब्जा 1997 तक था, क्योंकि उसी साल 99 साल की लीज की अवधि खत्म हो रही थी.

1997 में ब्रिटेन का हॉन्ग कॉन्ग पर से दावा पूरी तरह से खत्म हो गया. हॉन्ग कॉन्ग वापस चीन को दे दिया गया. लेकिन इसके साथ एक समझौता भी था. समझौते के तहत ये तय हुआ कि चीन को हॉन्ग कॉन्ग के लिए एक अलग व्यवस्था करनी होगी. इसके तहत चीन अगले 50 साल तक हॉन्ग कॉन्ग को राजनैतिक तौर पर आजादी देने के लिए राजी हुआ था. इसे कहा गया वन कंट्री, टू सिस्टम्स. इसके तहत हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को कुछ खास मुद्दों पर आजादी हासिल होनी थी, जनसभाएं करने का अधिकार था, अपनी बात कहने का अधिकार था, स्वतंत्र न्यायपालिका का अधिकार था और अपना राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने का अधिकार था, जो चीन के लोगों को हासिल नहीं था. इसका पालन करते हुए चीन ने तब हॉन्ग कॉन्ग को विशेष प्रशासनिक क्षेत्र का दर्जा दे दिया. लेकिन ये सब सिर्फ कहने सुनने की बातें थीं. असली खेल कुछ और ही था, जो चीन हॉन्ग कॉन्ग में खेल रहा था. ब्रिटिश करार के तहत उसने हॉन्ग कॉन्ग को स्वायत्तता तो दे दी, लेकिन वो हॉन्ग कॉन्ग को अपने कब्जे में लेने की कोई कोशिश छोड़ना नहीं चाहता था.

मिली हुई राजनैतिक स्वतंत्रता का फायदा उठाने के लिए हॉन्ग कॉन्ग अपने यहां लोकतंत्र को लागू करना चाहता था. इसके लिए वहां पर चुनाव होने थे, जिसमें हर वयस्क को वोट डालने का अधिकार होना था. साल 2007 में चीन ने कहा कि वो साल 2017 तक हॉन्ग कॉन्ग के हर वयस्क को वोटिंग का अधिकार दे देगा. लेकिन 2014-15 में चीन ने हॉन्ग कॉन्ग में चुनाव सुधार के नाम पर एक नया कानून थोपने की कोशिश की. चीन ने कहा कि हॉन्ग कॉन्ग में होने वाले चुनावों के लिए उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी 1200 सदस्यों वाली एक कमिटी की होगी. हॉन्ग कॉन्ग के लोगों ने चीन के इस फैसले का विरोध किया. वो सड़क पर उतर आए. प्रदर्शन करने लगे. प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस ने पेपर स्प्रे का छिड़काव किया तो लोग छाते से खुद को ढंककर प्रदर्शन करने लगे. कुछ ही दिनों में ये छाता हॉन्ग कॉन्ग में प्रदर्शन का प्रतीक बन गया और इस आंदोलन को नाम दिया गया अंब्रेला मूवमेंट.

लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ. कुछ भी नहीं. चीन जो चाहता था वही हुआ. साल 2017 में हॉन्ग कॉन्ग में चुनाव हुए और वैसे ही हुए जैसे चीन चाहता था. 1200 प्रतिनिधियों के जरिए कैरी लैम को हॉन्ग कॉन्ग का चीफ एग्जीक्यूटिव चुना गया. इन प्रतिनिधियों में आधे सदस्य सीधे तौर पर चुने प्रतिनिधि होते हैं, जबकि आधे पेशेवर या समुदाय विशेष के लोगों की ओर से चुने जाते हैं. यहां की संसद को लेजिस्लेटिव काउंसिल कहा जाता है. इसकी मुखिया के तौर पर कैरी लैम को चीन ने कुर्सी पर बैठाया था, तो उन्हें बात चीन की ही सुननी थी. कैरी लैम को कुर्सी पर बिठाने के बाद चीन लगातार हॉन्ग कॉन्ग में नए-नए कानूनों के जरिए अपना दखल बढ़ाने की कोशिश करता रहता है.

साल 2019 में चीन ने हॉन्ग कॉन्ग के लिए प्रत्यर्पण कानून लागू करने की कोशिश की, जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को चीन ले जाकर उनके ऊपर मुकदमा चलाया जा सकता था. इसको लेकर हॉन्ग कॉन्ग में खूब बवाल हुआ. लाखों लोग सड़क पर उतर आए. चीन की ओर से दलील भी दी गई कि सिर्फ गंभीर अपराध करने वालों को ही चीन ले जाया जाएगा और इसके लिए पहले हॉन्ग कॉन्ग के एक जज से मंजूरी ली जाएगी, लेकिन हॉन्ग कॉन्ग के लोग झुकने को तैयार नहीं हुए. आंदोलन बढ़ता ही गया. और फिर चीन को इस प्रत्यर्पण कानून को वापस लेना पड़ा.

इसके एक साल बाद यानि कि साल 2020 में चीन अब फिर से हॉन्ग कॉन्ग के लिए एक नया कानून लेकर आया है. इसका नाम है नैशनल सिक्यॉरिटी लॉ. चीन के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट का दावा है कि इस कानून के जरिए हॉन्ग कॉन्ग में विदेशी हस्तक्षेप, आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी. जबकि हकीकत ये है कि इस कानून के जरिए अब चीन के पास ये अधिकार चला जाएगा कि वो तय कर सके कि कौन देशद्रोही है और कौन सरकार गिराने की कोशिश कर रहा है. और इसका खामियाजा हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ रहे लोगों को उठाना पड़ेगा.

चायनीज एप बैन होने के बाद बौखलाये चीन ने WTO जाने की धमकी


नई दिल्ली। चीन की कंपनियों के खिलाफ भारत में जिस तरह का माहौल बनने लगा है और जिस तरह से भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा लेकर लगातार आक्रामक रणनीति अपना रही है उससे चीन बौखलाया हुआ है। पिछले एक हफ्ते के दौरान भारत की तरफ से 59 चीनी मोबाइल एप पर प्रतिबंध लगाने और चीन निर्मित उत्पादों पर रोक लगाने के लिए नए नियम लागू किये जाने पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और यह धमकी भी दी है कि वह भारत के खिलाफ भेद-भाव पूर्ण वाणिज्यिक नीति अपनाने पर विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में शिकायत दर्ज कराएगा। चीन के इस शिकायत पर भारत ने खास तवज्जो नहीं दी है और यह संकेत दे दिया है कि वह अपने रुख पर अटल रहेगा। विदेश मंत्रालय ने उल्टा यह कहा है कि भारत में विदेशी कंपनियों के लिए जितना खुली नीति है उतनी शायद ही कहीं हो।

कंट्री ऑफ ऑरिजन संबंधी नियम से भड़का चीन

चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता जीओ फेंग ने कहा है कि, ''चीन ने तो किसी भी भारतीय कंपनी के उत्पादों या उनकी सेवाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। लेकिन भारत चीन के उत्पादों व सेवाओं के खिलाफ कदम उठा रहा है जो डब्लूटीओ प्रावधानों का सीधा सीधा उल्लंघन है।'' जानकारों का मानना है कि चीन की बौखलाहट के पीछे सबसे बड़ी वजह पिछले हफ्ते लागू की गई कंट्री ऑफ ऑरिजन संबंधी नियम हैं। यह लंबी अवधि में चीन से मंगवाये गये सभी उत्पादों का पहचान करने का एक जरिया होगा। अभी तक चीन की कंपनियों के बने उत्पादों को आम आदमी के लिए पहचानना मुश्किल होता था। अब यह आसान हो जाएगा। भारत ने जिस आधार पर चीनी मोबाइल एप को बैन किया है उससे भी वहां चिंता है। भारत सरकार ने कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हित व भारतीय मोबाइल ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एप प्रतिबंधित कर रही है। अब दूसरे देशों को भी इस आधार पर चीनी एप पर लगाम लगाने का रास्ता खुल सकता है।