पोर्टफोलियो बनाने के लिए तीन पैमानों के लिहाज से शेयरों का चयन किया जाता है। पहला पैमाना है- समय अवधि के आधार पर, दूसरा- सेक्टर के आधार पर। तीसरा है- मार्केट कैपिटल के आधार पर। आपको पोर्टफोलियो निर्माण में इन तीनों मानकों का ख्याल रखना चाहिए।
आप चाहे शेयरों की शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग करते हैं या लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट, पोर्टफोलियो की संरचना और संतुलन आपके लिए बेहद आवश्यक है। इस सीरीज में हम चर्चा करेंगे कि एक समझदार निवेशक को किस तरह अपना पोर्टफोलियो बनाना चाहिए? पोर्टफोलियो बनाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और बाजार के उतार चढ़ाव के बीच अपने पोर्टफोलियो को किस तरह ढालना चाहिए।
सबसे पहले समझिए कि आखिर पोर्टफोलियो बनाने का बेसिक फॉर्मूला क्या है? इसके लिए आम तौर पर तीन पैमानों के लिहाज से शेयरों का चयन किया जाता है। पहला पैमाना है- समय अवधि के आधार पर, दूसरा- सेक्टर के आधार पर। तीसरा पैमाना है- मार्केट कैपिटल के आधार पर। आपको पोर्टफोलियो निर्माण में इन तीनों मानकों का ख्याल रखना चाहिए।
निवेश अवधि
समय अवधि का अर्थ है-आप कितने समय के निवेश के लिए शेयर चुनने जा रहे हैं। यानी अपने पोर्टफोलियो के लिए जिस शेयर को आप खरीद रहे हैं, उसे आप कितने समय बाद बेचकर मुनाफा कमाने की इच्छा रखते हैं। आप शॉर्ट टर्म में ट्रेड करने जा रहे हैं या फिर मध्यम अवधि के लिए या फिर लॉन्ग टर्म के लिए। आपके वित्तीय लक्ष्य क्या हैं, इस बात से निर्धारित होगा कि आपको अपने पोर्टफोलियो में किस प्रकार के शेयरों का निवेश करना चाहिए।
सेक्टरों का चुनाव
दूसरा मानक है-सेक्टर यानी क्षेत्रों पर आधारित शेयरों का चुनाव। आपको अपने पोर्टफोलियो में अलग अलग सेक्टरों के शेयर शामिल करना चाहिए। अगर मौजूदा दौर की बात करें तो मेरी सलाह होगी कि किसी खुदरा निवेशक को इन सेक्टरों के शेयरों को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करना चाहिए- ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, टेलीकम्युनिकेशन, बैंकिंग और नॉन बैंकिंग फाइनेंस, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर गुड्स। इसके अलावा आप पावर सेक्टर और सॉफ्टवेयर और आईटी के शेयरों को भी अपने पोर्टफोलियो में शामिल कर सकते हैं। यह बस एक नमूना इसके अलावा भी आप अपनी पसंद और आकलन के आधार पर कई और क्षेत्रों के चुनिंदा शेयरों में निवेश की संभावना टटोल सकते हैं।
अलग-अलग सेक्टर के शेयरों में निवेश का सबसे बड़ा लाभ यह रहता है कि आप बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच अपने निवेश के जोखिम को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। अगर किसी एक सेक्टर का प्रदर्शन खराब होता है, फिर भी आपके पोर्टफोलियो पर इसका सीमित असर ही पड़ेगा। मान लीजिए कि आपके पोर्टफोलियो में ऑटोमोबाइल सेक्टर के दस फीसदी शेयर हैं। अब अगर सरकार इस सेक्टर से जुड़े टैक्स या अधिभार में वृद्धि करती है और इससे संबंधित शेयर लुढ़क जाते हैं, तब भी आपके मात्र दस फीसदी शेयर ही प्रभावित होंगे। इसलिए सलाह दी जाती है कि विविध प्रकार के सेक्टरों का पोर्टफोलियो में समावेश करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त यह भी बेहतर होगा कि एक ही सेक्टर के तीन चार अलग- अलग शेयरों में थोड़ा थोड़ा कर निवेश किया जाए। जैसे- अगर आप आईटी सेक्टर में निवेश करना चाहते हैं तो आप टीसीएस, इनफोसिस, विप्रो और टेक महेंद्रा, एचसीएल जैसी कंपनियों को विकल्प के तौर पर सामने रख सकते हैं।
मार्केट कैपिटल
पोर्टफोलियो बनाने का तीसरा आधार मार्केट कैपिटल है- यानी जिस कंपनी के शेयर आप खरीदने जा रहे हैं, उसका पूंजीगत आधार कितना बड़ा है। वह लार्ज कैप है या मिड कैप या फिर स्मॉल कैप। नए खुदरा निवेशक तीनों तरह की प्रमुख कंपनियों के शेयरों में निवेश कर सकते हैं। लेकिन निवेश की सुरक्षा के लिहाज से स्मॉल कैप कंपनियों के स्टॉक में अपनी पूंजी का छोटा हिस्सा लगाएं और लार्ज कैप कंपनियों के शेयरों में अपेक्षाकृत बड़ा हिस्सा निवेश करें। हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि किस कंपनी का शेयर कब और कितना उठेगा या गिरेगा लेकिन आम तौर पर देखा जाता है कि लार्ज कैप कंपनियों के शेयरों में स्मॉल कैप के मुकाबले स्थिरता ज्यादा होती है। वैसे तो हर व्यक्ति को अपनी जरूरत के हिसाब से निवेश का अनुपात तय करना चाहिए लेकिन छोटे और खुदरा निवेशकों के लिए बेहतर होगा कि वे एक वक्त में किसी एक स्मॉल कैप कंपनी के शेयर में अपनी कुल पूंजी का पांच फीसदी हिस्सा ही लगाएं। लार्ज कैप के मामले में आप इसे बढ़ाकर आठ से दस फीसदी कर सकते हैं। एक और जरूरी बात शेयरों का चुनाव करते समय रिस्क फैक्टर पर जरूर गौर करें। जोखिम का मूल्यांकन करने के बाद ही निवेश का फैसला करें।