वैज्ञानिकों की लंबे समय से चल रही तलाश पूरी, शुक्र के बादलों में जीवन के संकेत मिले



वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के बादलों में फॉस्फीन गैस के अणुओं की पहचान की है। इस गैसीय अणु की उपस्थिति को पड़ोसी ग्रह के वातावरण में सूक्ष्म जीवों के होने का संकेत माना जा रहा है। ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती पर फॉस्फीन गैस या तो औद्योगिक तरीके से बनाई जाती है या फिर ऐसे सूक्ष्म जीवों से बनती है जो बिना ऑक्सीजन वाले वातावरण में रहते हैं। वैज्ञानिक लंबे समय में शुक्र के बादलों में जीवन के संकेत तलाश रहे हैं।

उत्सुकता के आधार पर किया गया प्रयोग

फॉस्फीन में हाइड्रोजन और फॉस्फोरस होता है। शुक्र के बादलों में इस गैस का होना वहां के वातावरण में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति का संकेत दे रहा है। इस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने पहले जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलिस्कोप (जेसीएमटी) का इस्तेमाल किया। इसके बाद चिली में 45 टेलिस्कोप से इस पर नजर रखी गई। प्रोफेसर जेन ग्रीव्स ने कहा कि यह पूरी तरह से उत्सुकता के आधार पर किया गया प्रयोग था।

सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति की संभावना और मजबूत हुई

पड़ोसी ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति बहुत क्षीण है। एक अरब अणुओं में फॉस्फीन के करीब 20 अणु मिले हैं। वैज्ञानिक ने इस संभावना पर भी अध्ययन किया है कि यहां फॉस्फीन के बनने में किसी प्राकृतिक क्रिया का योगदान है या नहीं। इस संबंध में बहुत पुख्ता प्रमाण नहीं मिल सके हैं। सूर्य के प्रकाश और ग्रह की सतह से ऊपर उठे कुछ खनिजों की क्रिया से भी इस गैस के बनने की बात कही गई, हालांकि इसकी भी पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति की संभावना और मजबूत हुई है।

आपको बता दें कि शुक्र सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है। चंद्रमा के बाद यह रात को आकाश में सबसे चमकीला दिखने वाला ग्रह है। शुक्र एक ऐसा ग्रह है, जो पृथ्वी से देखने पर कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लिए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुंचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है।


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