आज 8 नवम्बर को अहोई अष्टमी है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत रखने से संतान के कष्ट समाप्त हो जाते है एवं उनके जीवन में सुख-समृद्धि व तरक्की आती है। अहोई को अनहोनी शब्द का अपभ्रंश कहा जाता है और मां पार्वती किसी भी प्रकार की अनहोनी को टालने वाली होती हैं। इस कारण ही अहोई अष्टमी के व्रत के दिन मां पार्वती की अराधना की जाती है। सभी माताएं इस दिन अपनी संतानों की लंबी आयु और किसी भी अनहोनी से रक्षा करने की कामना के साथ माता पार्वती व सेह माता की पूजा-अर्चना करती हैं।
क्या करें और क्या न करें
- अहोई अष्टमी पर भी अहोई माता से पहले भगवान गणेश की पूजा करें, उसके बाद माता अहोई की पूजा करें। ऐसा करने से आपकी पूजा फलित होगी।
- अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला ही रखना चाहिए। ऐसा करने से ही आपकी संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और उसे समृद्धि प्राप्त होती है।
- अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं। तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को खोलें, तभी पानी या भोजन ग्रहण करें।
- अहोई अष्टमी के दिन अपने सास-ससुर के लिए बयाना जरूर निकालें। अगर आपके सास-ससुर ना हों तो अपना बायना किसी पंडित या किसी बुजुर्ग को दें।
- अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें। पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें। ऐसा करने से भी आपको पूजा का शुभ फल प्राप्त हो सकता है।
-अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय अपने बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को खिलाएं।
-अहोई अष्टमी के दिन पूजन के बाद किसी ब्राह्मण या गाय को खाना जरूर खिलाएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
-अहोई अष्टमी के दिन मिट्टी को बिल्कुल भी हाथ न लगाएं और न ही इस दिन खुरपी से कोई पौधा ही उखाड़ें। ऐसा करने से अहोई माता की नाराजगी आपको झेलनी पड़ सकती है।
- अहोई अष्टमी के दिन किसी निर्धन व्यक्ति को दान अवश्य दें। शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्रत के बाद दक्षिणा देने से उस व्रत के पूर्ण फल प्राप्त होते हैं।
- अहोई माता की पूजा करते समय खानदान की हर संतान का नाम अहोई माता के चित्र के साथ लिखें। अगर याद हो तो वंशावली का पेड़ ही बना दें।
जानिए अहोई अष्टमी पूजन का समय
अहोई अष्टमी के व्रत में माताएं तारों का दर्शन कर यह व्रत सम्पन्न करेंगी। अष्टमी शनिवार रात 2:30 से रविवार रात 1:36 बजे तक रहेगी। रविवार को सूर्यास्त शाम 5:32 बजे हो जाएगा। उसके बाद तारों के दर्शन किए जा सकेंगे। इसमें अहोई माता का पूजन किया जाएगा और बच्चों में विभिन्न आकार में तैयार मठरी लुटाई जाएगी।
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे (मस्तक) पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।
(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहता था उसके सात लड़के थे। दीपावली से पूर्व साहूकार की स्त्री घर की लीपा -पोती के लिए मिट्टी लेने खदान में गई ओर कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी जगह एक सेह की मांद थी। स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा मर गया। साहूकार की पत्नी को इससे बहुत दुःख हुआ वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अचानक दूसरा, तीसरा ओर वर्ष भर में उसके सातों बेटे मर गए।
एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नही किया। हां, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और उसके बाद मेरे सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई। औरतों ने साहूकार की पत्नी से कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती पार्वती की शरण लेकर सेह ओर सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
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