नवरात्र महा अष्टमी, ये शुभ मुहूर्त बीतने से पहले कर लें कन्या पूजन

 Maha Ashtami 2022 Shubh Muhurt: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है. नौ दिन तक चलने वाला ये महापर्व अब समाप्ति की तरफ है. नवरात्र के 9 दिनों में सबसे ज्यादा महत्व अष्टमी और नवमी तिथि का है. अष्टमी को दुर्गाष्टमी भी कहते हैं. ये नवरात्र का आठवां दिन होता है. इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा का विधान है. कहते हैं दुर्गाष्टमी के दिन गौरी मां की उपासना करने से सर्वकल्याण प्राप्त होता है. इस दिन कन्या पूजन करने से भी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस साल शारदीय नवरात्रि की महा अष्टमी 03 अक्टूबर दिन सोमवार को है. आइए जानते हैं कि इस बार महाष्टमी पर कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है.



कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त (kanya pujan shubh muhurt)


अमृत- सुबह 06 बजकर 15 मिनट से सुबह 07 बजकर 44 मिनट तक

शुभ- सुबह 09 बजकर 12 मिनट से सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक

अभिजीत- सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक



कौन हैं मां महागौरी?

चार भुजाओं वाली देवी महागौरी त्रिशूल और डमरू धारण करती हैं. दो भुजाएं अभय और वरद मुद्रा में रहती हैं. इन्हें धन ऐश्वर्य, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली देवी माना गया है. मां महागौरी स्वरूप की पूरी मुद्रा बहुत शांत है. अष्टमी तिथि के दिन मां गौरी की असीम कृपा पाने के लिए आपको उत्तम नियम से मां महागौरी की उपासना करनी होगी.



महाष्टमी की पूजन विधि (Maha ashtami pujan vidhi)

महा अष्टमी पर पीले वस्त्र धारण करके पूजा करें. देसी घी का दीपक जलाकर महागौरी का आव्हान करें और मां को रोली, मौली, अक्षत, मोगरा पुष्प अर्पित करें. इस दिन देवी को लाल चुनरी में सिक्का और बताशे रखकर जरूर चढ़ाएं. इससे मां महागौरी प्रसन्न होती हैं. देवी को नारियल या नारियल से बनी मिठाई का भोग लगाएं. मंत्रों का जाप करें और अंत में मां महागौरी की आरती करें.



कन्या पूजन की विधि (kanya pujan vidhi)

नवरात्रि में महाष्टमी पर कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन सुबह के समय देवी की पूजा के बाद कन्या पूजन किया जाता है. इसमें नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है. इनके साथ काल भैरव के रूप में एक छोटे से बालक को भी बैठाया जाता है. सबसे पहले एक बर्तन में इन कन्याओं के चरण धोएं जाते हैं. फिर इनके माथे पर रोली का तिलक और हाथ में कलावा बांधा जाता है. इसके बाद इन्हें हलवा, काले चले और फल का भोग लगाते हैं. अंत में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है और उन्हें कोई उपहार भेंट किया जाता है.


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