सुनी-सुनाई है कि पिछली बार के विधानसभा चुनाव तक गुजरात में जो कांग्रेस के साथ होता था वही अब भाजपा के साथ हो रहा हैप्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की कड़ी परीक्षा अपने ही राज्य गुजरात में हो रही है. भाजपा ने सोचा था उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के बाद गुजरात का चुनाव जीतना बेहद आसान होगा. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है भाजपाई खेमे में बेचैनी महसूस की जा रही है. 22 साल तक गुजरात पर राज करने के बाद भाजपा एक ऐसा चुनाव लड़ने जा रही है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति का इन्तेहान इस बार उनके अपने प्रदेश में ही होना है.गुजरात के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री की गुजरात में हुई रैली में भीड़ तो बहुत आई लेकिन ज्यादा फायदा नहीं हुआ. भाजपा नेताओं ने सोचा था कि इस रैली से गुजरात चुनाव का प्रचार लॉन्च हो जाएगा. लेकिन असर उतना जोरदार नहीं हुआ. सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि देश के सभी मीडिया चैनल्स और अखबारों से नरेंद्र मोदी के भाषण को प्रमुखता से दिखाने और छापने की गुजारिश की गई थी. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जब मंच पर भाषण देने आए ऐन उसी वक्त राजेश और नूपुर तलवार जेल से रिहा हो गये. न्यूज़ चैनल्स ने मोदी के बजाय आरुषि तलवार के माता-पिता की रिहाई को प्रमुखता दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर तगड़ा हमला बोला, कांग्रेस को ज़मानती पार्टी कहा, लेकिन इसका असर वैसा नहीं हुआ जैसा भाजपा ने सोचा था. उल्टा भाजपा को इस बार गुजरात में एक अलग तरह की परेशानी झेलनी पड़ रही है. पत्रकारों से बातचीत में भाजपा के नेता बताते हैं कि इस बार चुनाव में मुश्किल दो वजहों से है. पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस अचानक ज़िंदा हो गई है. पहले कांग्रेस के नेता आपस में ही लड़ा करते थे और कुछ तो ऐसे थे जो भाजपा के लिए ही काम करते थे. लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं. कांग्रेस इस बार सच में चुनाव लड़ रही है और भाजपा के कार्यकर्ता और नेता आपस में लड़ रहे हैं. कुछ भाजपा विधायकों को लगता है कि उनका टिकट कटने वाला है तो उन्होंने पहले ही कांग्रेस से बातचीत शुरू कर दी है. कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को भी टिकट का भरोसा मिला है, इसलिए उनके इलाकों के भाजपा नेता भी कांग्रेस के संपर्क में हैं. ऊपर से राज्यसभा में अहमद पटेल को चुनाव जिताने के बाद कांग्रेस के छोटे और बड़े नेताओं में इस बार काफी आत्मविश्वास भी झलक रहा है. भाजपा को इस तरह की कांग्रेस की आदत नहीं थी. 22 सालों से कांग्रेस यह मानकर चुनाव लड़ती थी कि वह मोदी को हरा नहीं सकती. इस बार वह यह सोचकर लड़ रही है कि अगर मिलकर चुनाव लड़ेगी तो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है.भाजपा को दिक्कत सिर्फ कांग्रेस से ही नहीं हो रही है. गुजरात के तीन नेताओं ने भी उसकी नींद खराब कर रखी है. ये तीन नेता हैं पटेल समुदाय के हार्दिक पटेल, दलित समुदाय के जिग्नेश मेवानी और पिछड़ी जाति के अल्पेश ठाकोर. भाजपा ने इन्हें अपने साथ लेने की पूरी कोशिश की लेकिन इन्होंने उससे हाथ मिलाने से इंकार कर दिया. सुनी-सुनाई है कि कांग्रेस और हार्दिक पटेल के बीच समझौता होना करीब-करीब तय है. हार्दिक अभी 24 साल के हैं इसलिए खुद चुनाव नहीं लड़ सकते. जब राहुल गांधी गुजरात आए तो हार्दिक ने उनका स्वागत किया. अब खबर है कि राहुल और हार्दिक के बीच दो बार बैक चैनल बातचीत हो चुकी है. कांग्रेस हार्दिक पटेल की सभी शर्तें मानने के लिए तैयार है और हार्दिक किसी भी कीमत पर भाजपा को हराना चाहते हैं.इसी तरह दलित समाज में उपजे असंतोष को जिग्नेश मेवानी आवाज़ दे रहे हैं. उनका रुख भी एकदम साफ है कि वे भाजपा के साथ नहीं जाएंगे. ठाकोर समुदाय के अल्पेश इस बार चुनाव लड़ने वाले हैं और अपनी अलग पार्टी भी बनाएंगे. लेकिन इस बात की काफी संभावना है कि उनका समर्थन भी कांग्रेस को ही मिलेगा. अहमदाबाद के एक पत्रकार की बात नोट करने वाली है - 22 साल में भाजपा ने सिर्फ दो नेताओं को ही आगे बढ़ाया, बाकी जो आगे निकलना चाहते थे उन्हें पीछे धकेल दिया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा के पास आज की तारीख में हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश को टक्कर देने वाला कोई पटेल, दलित या पिछड़ा नेता नहीं है. अगर इन नौजवान नेताओं ने राहुल गांधी से हाथ मिला लिया तो मोदी-शाह की जोड़ी को अपने ही घर में दूसरा झटका मिल सकता है. फर्क बस इतना है कि पिछली बार राज्यसभा की एक सीट गई थी, इस बार पूरे राज्य के चले जाने का खतरा है.Source: सत्याग्रह
EmoticonEmoticon