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लोहड़ी त्यौहार का महत्व


लोहड़ी दक्षिण एशिया के पंजाबी धर्म के लोगो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। यह माना जाता है कि यह सर्दियों मे उस दिन मनाया जाता है जब दिन साल का सबसे छोटा दिन और रात साल की सबसे बड़ी रात होती है।

यह एक आलाव जलाकर नृत्य और दुल्हा बत्ती के प्रशंसा गायन द्वारा किसानी त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है। मुख्यतः यह पंजाबियों का त्यौहार है किन्तु इसे भारत के उत्तरी राज्यो में रहने वाले लोगो के द्वारा भी मनाया जाता है जैसे हरियाणा; हिमाचल प्रदेश इत्यादि।

लोहड़ी 13 जनवरी को पंजाब; दिल्ली; मुम्बई; हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के अन्य राज्यों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जायेगा।

लोहड़ी क्यों मनायी जाती है?
पंजाबियों में लोहड़ी मनाने की बहुत सारी मान्यताए प्रचलित है; जिसमे से कुछ नीचे दी गयी है।

यह माना जाता है कि नाम लोहड़ी शब्द "लोई" (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था।

हालांकि, कुछ मानते है कि यह शब्द "लोह" (चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त उपकरण) से उत्पन्न हुआ था।

लोहड़ी का त्योहार मनाने का एक और विश्वास है, कि लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के नाम पर हुआ लोग मानते है कि होलिका की बहन बच गयी थी, हालांकि होलिका खुद आग मे जल कर मर गयी।

इस त्योहार मनाने का एक और कारण है कि लोहड़ी शब्द तिलोरही (तिल का और रोरही एक संयोजन) से उत्पन्न हुआ था।

किसान नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं।


लोहड़ी कैसे मनाते है
अन्य त्योहार की तरह ही बहुत सारी खुशी और उळास के साथ भारत में लोगों द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है। यह ऐसा त्यौहार है जो, एक ही स्थान पर परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों को एक साथ लाता है। आज के दिन लोग मिलते है और एक-दूसरे को मिठाई बॉटकर आनंद लेते है। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते है, तब गाना गाते है और उस के चारो ओर नाचते है। वे आलाव के चारो ओर गाते और नाचते समय आग मे कुछ रेवडी, टॉफी, तिल के बीज, पॉपकॉर्न, गुड अन्य चीज़ें आग मे डालते है। यह भारत के विभिन्न प्रांतो मे अलग अलग नामो से मनाया जाता है, जैसे आंध्र प्रदेश मे भोगी, असम मे मेघ बिहू, यू0 पी0 बिहार और कर्नाटक मे मकर संक्रांति, तमिलनाडू मे पोंगल आदि। शाम को एक पूजा समारोह रखा जाता है जिसमे लोग अग्नि की पूजा करते है और आलाव के चारो ओर परिक्रमा करते है भविष्य की समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते है। लोग स्वादिष्ट भोजन खाने का आनंद लेते है, जैसे मक्के की रोटी, सरसो का साग, तिल, गुड, गज्जक, मूंगफली, पॉपकॉर्न आदि। सभी नाचते है गाते है और लोहडी के प्रसाद का आनंद लेते है।

इस दिन सभी सुन्दर और रंग बिरंगे कपडे पहनते है और ढोल (एक संगीत यंत्र) की थाप पर भांगड़ा(गिद्दा) करते है। लोहडी का त्योहार किसानों के लिए नए वित्तीय वर्ष के लिए एक प्रारंभिक रूप का प्रतीक है। यह भारत और विदेशो मे रहने वाले सभी पॅजाबियो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। लोहडी का त्यौहार नविवाहित जोडे के लिये उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि घर मे जन्मे पहले बच्चे के लिये।

इस दिन, दुल्हन सभी चीजो से सुसज्जित होती है, जैसे नई चूड़ियाँ, कपड़े, अच्छी बिंदी, मेंहदी, साड़ी, स्टाइलिश बाल अच्छी तरह नए कपड़े और रंगीन पगड़ी पहने पति के साथ तैयार होती है। इस दिन हर नई दुल्हन को उसकी ससुराल की तरफ से नए कपड़े और गहने सहित बहुत से तोहफे दिये जाते है।

दोनों परिवार (दूल्हे और दुल्हन) के सदस्यों की ओर से और अन्य मुख्य अतिथियो को इस भव्य समारोह में एक साथ आमंत्रित किया जाता है। नविवाहित जोडा एक स्थान पर बैठा दिया जाता है और परिवार के अन्य सदस्यों, पड़ोसियों, दोस्तों, रिश्तेदारों द्वारा उन्हें कुछ उपहार दिये जाते है। वे सब उनके बेहतर जीवन और उज्जवल भविष्य के लिए नये जोड़े को आशीर्वाद देते है।

नवजात शिशु की भी पहली लोहङी बहुत भव्य तरीके से मनायी जाती है। यह परिवार में पैदा हुए नए शिशु के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवसर है। हर कोई बच्चे के लिए जरूरी चीजों उपहार के रूप मे देकर परिवार में एक नए बच्चे का स्वागत करते हैं। बच्चे की माँ अच्छी तरह से तैयार बच्चे को अपनी गोद में लेकर एक स्थान पर बैठती हैं। बच्चा नये कपङे, गहनो और मेन्हदी लगे हाथो मे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा नाना-नानी और दादा-दादी दोनों की तरफ से (कपड़े, गहने, फल, मूंगफली, मिठाई, आदि सहित) बहुत सारे तोहफे पाता है।


लोहड़ी मनाने की आधुनिक परम्परा
आज कल लोहङी उत्सव का आधुनिकीकरण हो गया है। पहले लोग उपहार देने के लिए गज्जक और तिल इस्तेमाल करते थे तथापि, आधुनिक लोगों ने चॉकलेट केक और चॉकलेट गज्जक उपहार देना शुरू कर दिया है। क्योंकि वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण, लोग लोहङी मनाते समय पर्यावरण संरक्षण और इसकी सुरक्षा के बारे में अत्यधिक जागरूक और बहुत सचेत है। वे लोहङी पर आलाव जलाने के लिये बहुत ज्यादा पेङ काटने के बजाय इस अवसर के दौरान वृक्षारोपण करने की कोशिश करते है।



लोहड़ी मनाने का महत्व
सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है जबकि, मार्च के अन्त मे और अप्रैल की शुरुआत मे काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले, किसानों को इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कलैण्ङर के अनुसार जनवरी के मध्य मे पङता है जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। सामान्यतः लोहङी का त्यौहार सर्दी खत्म होने और बसन्त के शुरु होने का सूचक है। उत्सव के दौरान लोग अपने पापो से मुक्ति के लिये गंगा में नहाते है।
हर कोई पूरे जीवन मे सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाने है। यह सबसे शुभ दिन है जो मकर राशि में सूर्य के प्रवेश को इंगित करता है, यह 14 जनवरी से शुरू होता है और 14 जुलाई को समाप्त हो जाता है। कुछ लोग इसे एक अंत अर्थात मार्गज़्ही महीने के अंतिम दिन (चंद्र कैलेंडर के अनुसार 9 महीने) के रूप में मनाते हैं।



लोहड़ी मनाने के पीछे का इतिहास
लोहङी मनाने के पीछे बहुत पुराना इतिहास है। यह नए साल की निशानी और वसंत के मौसम के शुरू होने के साथ ही सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है। लोगो की मान्यता है कि लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है, तब से प्रत्येक दिन बड़ा और रातें धीरे-धीरे छोटी होना शुरू हो जाती है। यह दुल्हा बत्ती की प्रशंसा में मनाया जाता है, जो राजा अकबर के समय में एक मुस्लिम डाकू था। वह अमीर लोगों के घरो से धन चोरी करता था और गरीब लोगों को बांट देता था। वह गरीब लोगों और असहाय लोगों के नायक की तरह था, उसने विभिन्न लड़कियों के जीवन को बचाया जो अजनबियों द्वारा जबरन अपने घर से दूर ले जायी गयी थी। उसने असहाय लड़कियों की उनके विवाह में दहेज का भुगतान करके मदद की। तो, लोगो ने गरीब लोगों की गयी बहुत सारी मदद गरीब लोगों के लिए गये उसके महान कार्यों के लिए दुल्हा भट्टी की प्रशंसा मे लोहड़ी त्योहार मना रहा शुरू कर दिया।

लोहड़ी की घटना के दक्षिण से उत्तर की दिशा में सूर्य की गति को इंगित करती है, और कर्क रेखा से मकर रेखा को प्रवेश करती है। लोहड़ी त्योहार भगवान सूर्य और आग को समर्पित है। यह हर पंजाबी के लिए सबसे खुशी के मौकों में से एक है। सूर्य और आग ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत को दर्शाते है और साथ ही आध्यात्मिक शक्ति को भी जिसे लोग आशीर्वाद पाने के लिए पूजा करते है। लोग अपने देवताओ को मूंगफली, मिठाई, पॉपकॉर्न, तिल, चिरवा, रेवङी गजक, आदि के रूप में कुछ खाना-चढ़ाते है। यह दोनों धर्मों (सिखों और हिंदुओं) के लोगों द्वारा मनाया जाता है।



लोहड़ी के त्यौहार के नियम व तरीके
लोहड़ी के दिन सुबह में, घर के बच्चे बाहर जाने के लिए और कुछ पैसे और खाद्य सामग्रियों सहित जैसे तिल या तिल के बीज, गजक, मूंगफली, गुड़, मिठाई, रेवङी, आदि की मांग करते है। वे दुल्हा बत्ती की तारीफ करते हुए एक गीत भी गाते हैं, जो पंजाबी लोगों के लिए एक नायक था।

शाम को सूर्यास्त के बाद, लोग एक साथ कटी हुई फसल के खेत मे एक बहुत बङा आलाव जलाते है। लोग आलाव के चारो ओर घेरा बनाकर गीत गाते और नाचते है। वे आग मे कुछ चावल, पॉपकॉर्न या अन्य खाद्य सामग्रियों फेंकते हुये जोर से चिल्लाते है "आदर आए दलिदर जाए" अर्थात् गरीबी दूर हो और घर मे बहुत सारी समृद्धि आये। वे बहुतायत भूमि और समृद्धि के लिए अपने भगवान अग्नि और सूर्य से प्रार्थना करते हैं। पूजा समारोह के बाद वे अपने मित्रो, रिश्तेदारो, पङोसियो आदि से मिलते है और बधाई व बहुत सारी शुभकामनाओ के साथ उपहार, प्रसाद वितरित करते है। वे स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों के रात के खाना खाने का आनंद लेते है जैसे, मक्के की रोटी और सरसो का साग। वे विशेष रूप से इस दिन को मनाने के लिए एक मीठे पकवान के रूप में गन्ने के रस की खीर बनाते हैं।

वे ढोल व ड्रम की थाप पर बिशेष प्रकार का नृत्य भागडा करते है। लोहड़ी के बाद का दिन माघ महीने की शुरुआत का संकेत है जो माघी दिन कहा जाता है। इस पवित्र दिन पर लोग गंगा मे डुबकी लगाते है और गरीबो को कुछ दान देते है। वे घर में नए बच्चे के जन्म और नविवाहित जोङे के लिये एक बड़ी दावत की व्यवस्था करते है। वे ढोल और ड्रम जैसे संगीत वाद्ययंत्र की ताल पर पारंपरिक भांगड़ा गीतों पर नाचते हैं। यह एक महान पर्व है जब लोग अपने व्यस्त कार्यक्रम या जॉब से एक अल्प विराम लेकर एक दूसरे के साथ का आनन्द लेते है। यह बहुत बड़ा उत्सव है जो सभी के लिए एकता और भाईचारे की भावना लाता है। पृथ्वी पर खुश और समृद्ध जीवन देने के लिए लोग अपने सर्वशक्तिमान के लिए धन्यवाद देते है।


लोहड़ी लोक-गीत


सुंदरिए-मुंदरिए हो, तेरा कोन विचारा हो


सुंदर मुंदरिए - हो

तेरा कौन विचारा-हो

दुल्ला भट्टी वाला-हो

दुल्ले ने धी ब्याही-हो

सेर शक्कर पाई-हो

कुडी दे बोझे पाई-हो

कुड़ी दा लाल पटाका-हो

कुड़ी दा शालू पाटा-हो

शालू कौन समेटे-हो

चाचा गाली देसे-हो

चाचे चूरी कुट्टी-हो

जिमींदारां लुट्टी-हो

जिमींदारा सदाए-हो

गिन-गिन पोले लाए-हो

इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया - हो!





'पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी हाथी

उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ!

नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई

टेर नी माँ टेर नी

लाल चरखा फेर नी!

बुड्ढी साँस लैंदी है

उत्तों रात पैंदी है

अन्दर बट्टे ना खड्काओ

सान्नू दूरों ना डराओ!

चारक दाने खिल्लां दे

पाथी लैके हिल्लांगे

कोठे उत्ते मोर सान्नू

पाथी देके तोर!




कंडा कंडा नी लकडियो

कंडा सी

इस कंडे दे नाल कलीरा सी

जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी,

पा माई पा,

काले कुत्ते नू वी पा

काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,

तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ,

मझियाँ गाईयाँ दित्ता दुध,

तेरे जीवन सके पुत्त,

सक्के पुत्तां दी वदाई,

वोटी छम छम करदी आई।'




'साड़े पैरां हेठ रोड, सानूं छेती-छेती तोर!'

'साड़े पैरां हेठ दहीं असीं मिलना वी नईं!'

'साड़े पैरां हेठ परात सानूं उत्तों पै गई रात!'

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व


इस दिन को ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।


ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है


माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥



मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।

सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक माना गया है। मकर संक्रान्ति का प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है और मकर संक्रान्ति के बाद सूर्य उत्तरी गोलार्ध में आ जाता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है।

अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू होने लगता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होता है।

भारत में मकर संक्रान्ति


सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है!


उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबादमें गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोगबाग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।


महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"


तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहूके नाम से मनाते हैं।


राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।

इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

हुक्के से धुम्रपान करा कर मरीजों का इलाज


यह तो हम सब जानते है कि धूम्रपान करना सेहत के लिए हानिकारक होता है। और हर जगह बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है कि धुम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है। लेकिन जो व्यक्ति पहले से बीमार हों उनके लिए तो यह किसी जहर से कम नहीं होता हैं। लेकिन एक ऐसी जगह है जहां पर मरीजों को दवाइयों के रूप में हुक्का पीने के लिए दिया जाता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश के उज्जैन में एक ऐसा अस्पताल है, जहां डॉक्टर खुद मरीजों को पीने के लिए हुक्का देते हैं। इस अस्पताल के डॉक्टरों का मानना है कि उनके खास हुक्के को पीने से न सिर्फ दमे के मरीज बल्कि सायनस, सर्दी सहित सभी श्वांस के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। लगातार हुक्के का काश लगा रहे ये लोग कोई अपने शोक के लिए किसी हुक्के बार में नहीं बैठे हैं, बल्कि ये सभी अपनी अपनी अलग अलग बीमारियों से पीड़ित होकर उज्जैन के आर्युवेदिक कालेज में अपना इलाज करवा रहे हैं।

दरअसल देश भर में हुक्के को भले ही गलत नजरों से देखा जाता है लेकिन उज्जैन के आयुर्वेदिक अस्पताल में अनोखे तरीके से मरीजों का इलाज किया जाता है। दरअसल संभवतः देश में पहली बार उज्जैन के शासकीय धन्वतरी आर्युवेदिक अस्पताल में हुक्के से धुम्रपान करा कर मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

वही , अस्पताल का मानना है कि हुक्का पीने से कई लाइलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं। आपको बता दे कि यहां पर तंबाकू वाला हुक्का नहीं दिया जाता बल्कि इसमें तंबाकू की जगह पर जड़ी बूटियों का इस्तेमाल होता है।

बताया जाता है कि इन जड़ी बूटियों का धुआं सीधे शरीर के अंदर जाता है और मरीज को फायदा होता है।

इस अस्पताल के डॉक्टर निरंजन सर्राफ बताते हैं कि उनके पास देश के अलग-अलग हिस्सों से इलाज करवाने के लिए मरीज आते हैं और उनको इलाज से लाभ भी मिलता है। निरंजन ने दावा किया कि उनके अस्पताल का हुक्के पीने से दमा, जुखाम के अलावा फेफड़ों से जुड़ी हुई कई लाइलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

होम लोन नहीं चुका पा रहे - आपके पास हैं ये उपाय


बड़े से लेकर छोटे शहरों तक में घरों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए उसे खरीदने के लिए होम लोन जरूरी हो गया है. इनकम टैक्‍स की धारा 80सी और धारा 24 के तहत होम लोन पर मिलने वाली टैक्‍स छूट के कारण भी अधिकांश नौकरी-पेशा लोग होम लोन लेना चाहते हैं. लेकिन अफसोस कि इसे पूरा करने के बाद भी ठीकठाक संख्‍या में लोगों को मुंह की खानी पड़ती है. हम बात उन लोगों की कर रहे हैं, जो नौकरी छूटने या फिर किसी अन्‍य आकस्मिक कारणों से होम लोन की ईएमआई नहीं चुका पाते हैं. आज हम ऐसे लोगों के लिए एक्‍सपर्ट की राय के साथ ही सभी जरूरी उपाय लेकर आए हैं

जब होम लोन बन जाता है नासूर


होम लोन से घर खरीदने में भले ही बड़ी मदद मिलती हो, लेकिन यह लंबे समय के लिए आपकी लायबिलिटी भी बन जाता है. आज असुरक्षित जॉब मार्केट और खराब हो रही जीवन शैली के बीच नौकरी छूटने से लेकर हम कई तरह की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के भी शिकार हो जाते हैं. इन सबके अलावा जीवनयापन, बच्‍चों की पढ़ाई और बेटी की शादी के बढ़ते खर्च के कारण भी मिडिल क्‍लास से आने वाले लोग कई दफा मुसीबत में फंस जाते हैं.

इन कारणों से भी आती हैं समस्‍याएं
ईएमआई नहीं चुकाने की समस्‍या भविष्‍य की अपनी इनकम का अधिक आकलन करने और जरूरतों को कम करके देखने से भी पैदा होती है.

समय पर ईएमआई नहीं चुकाने के ये होते हैं असर
आपको सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि बैंक किसी भी सूरत में आपका लोन माफ नहीं करेगा. हां अगर आप लगातार 3 महीने तक लोन डिफॉल्‍ट करते हैं तो बैंक आपकी प्रॉपर्टी जब्‍त कर सकता है. पहली बार ईएमआई डिफॉल्‍ट करने पर बैंक उसकी फिक्र नहीं करता है, लेकिन दूसरी बार होने पर वह आपको अलर्ट करता है और तीसरी बार डिफॉल्‍ट करने पर बैंक इस लोन को एनपीए मानने लगता है. इसके बाद वह रिकवरी के उपाय करने लगता है.

तीन महीने के बाद वह कानूनी नोटिस भेज सकता है. इसके बाद बैंक प्रॉपर्टी की वैल्‍यू तय करके इसकी नीलामी करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है. नीलामी की तारीख सामान्‍य तौर पर नोटिस के एक महीने बाद रखी जाती है.

आपके पास ये हैं मौके
बैंक कानूनी और नीलामी प्रक्रिया में उलझना नहीं चाहता है. इसलिए वह अमूमन नीलामी में 6 महीने का समय ले लेता है. आप 6 महीने के भीतर बैंक से सम्‍पर्क करके पूरे मामले को पटरी पर ला सकते हैं. आप बैंक से अपने लोन का रीस्‍ट्रक्‍चर भी करवा सकते हैं. इसके अलावा आप अपनी दूसरी जमीन, प्रॉपर्टी, सोना, बीमा पॉलिसी, म्‍यूचुअल फंड्स जैसी चीजें बेचकर भी लोन चुका सकते हैं.

इन सबसे भी अगर बात नहीं बनती है तो आप इस घर को बेच सकते हैं. रियल एस्‍टेट एक्‍सपर्ट प्रदीप मिश्रा के अनुसार भी संकट बढ़ाने से अच्‍छा है कि आप घर को बेच दें. रियल एस्‍टेट एक्‍सपर्ट प्रदीप मिश्रा के अनुसार भी संकट बढ़ाने से अच्‍छा है कि आप घर को बेच दें.

बीमा से नहीं मिलता है समाधान
अगर किसी ने लोन का बीमा भी करा रखा है तो भी उसका फायदा कर्जदार की मौत के बाद ही मिलता है. चूंकि होम लोन 15 से 20 साल के लिए होता है, इसलिए समस्‍या और बढ़ जाती है.