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श्री रविवार की आरती - Sunday Prayer

Shri Raviwar Prayer
(श्री रविवार की आरती)


कहुं लगि आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकि जोति विराजे।


सात समुद्र जाके चरण बसे,
काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।


कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम।


भार अठारह रामा बलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।


छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,
कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।


‍ अमित कोटि जाके बाजा बाजें,
कहा भयो झनकारा करे हो राम।


चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।


शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,
नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।


हिम मंदार जाके पवन झकोरें,
कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।


लख चौरासी बन्ध छुड़ाए,
केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।

शनि देव जी की आरती - Saturday Prayer

Shani Dev Ji Prayer
(शनि देव जी की आरती)


आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥


पहली आरती प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश नख उदर विदारे॥


दूसरी आरती वामन सेवा।
बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥


तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।
सहसबाहु के भुजा उखारे॥


चौथी आरती असुर संहारे।
भक्त विभीषण लंक पधारे॥


पांचवीं आरती कंस पछारे।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥


तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥

लक्ष्मी जी की आरती - Friday Prayer

Shri Lakshmi Ji Prayer
(लक्ष्मी जी की आरती)


ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥


महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

बृहस्पति देव जी की आरती - Thursday Prayer



Bharaspati Deva Ji Prayer
(ॐ जय बृहस्पति देवा आरती)


ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।


जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।